Anupras Alankar in Hindi

Anupras Alankar in Hindi – अनुप्रास अलंकार क्या होता है?

Anupras Alankar in Hindi: हेलो स्टूडेंट्स, आज हम इस आर्टिकल में अनुप्रास अलंकार क्या होता है? (Anupras Alankar) के बारे में पढ़ेंगे | यह हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसे हर एक विद्यार्थी को जानना जरूरी है |

Anupras Alankar in Hindi

अनुप्रास शब्द ‘अनु’ और ‘प्रास’ शब्दों के जोड़ने से बना है। ‘अनु’ का मतलब होता है बार-बार तथा ‘प्रास’ का मतलब होता है वर्ण। अतः जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की आवृत्ति बार-बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार(Anupras Alankar) होता है।

अनुप्रास अलंकार क्या होता है?

इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार-बार उपयोग किया जाता है।

जैसे :

1. जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।

विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।

2. मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्र बुलाए।

अनुप्रास अलंकार के प्रकार

अनुप्रास अलंकार के मुख्यतः पांच प्रकार होते हैं:-

इसे भी पढ़े: अन्योक्ति अलंकार किसे कहते है?

  • छेकानुप्रास अलंकार
  • वृत्यानुप्रास अलंकार
  • लाटानुप्रास अलंकार
  • अन्त्यानुप्रास अलंकार
  • श्रुत्यानुप्रास अलंकार

(क)छेकानुप्रास

जहाँ स्वरूप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार हो, वहाँ छेकानुप्रास होता है।

इसमें व्यंजनवर्णों का उसी क्रम में प्रयोग होता है। ‘रस’ और ‘सर’ में छेकानुप्रास नहीं है। ‘सर’-‘सर’ में वर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है, अतएव यहाँ छेकानुप्रास है। महाकवि देव ने इसका एक सुन्दर उदाहरण इस प्रकार दिया है-

छेकानुप्रास का उदाहरण

रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै

साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।

यहाँ ‘रीझि रीझ’, ‘रहसि-रहसि’, ‘हँसि-हँसि’ और ‘दई-दई’ में छेकानुप्रास है, क्योंकि व्यंजनवर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है।

(ख)वृत्यनुप्रास

वृत्यनुप्रास जहाँ एक व्यंजन की आवृत्ति एक या अनेक बार हो, वहाँ वृत्यनुप्रास होता है। रसानुकूल वर्णों की योजना को वृत्ति कहते हैं।

वृत्यनुप्रास का उदाहरण

(i) सपने सुनहले मन भाये।

यहाँ ‘स’ वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है।

(ii) सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।

यहाँ ‘स’ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है

ग) लाटानुप्रास–

जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, पर तात्पर्य या अन्वय में भेद हो, तो वहाँ ‘लाटानुप्रास’ होता है।

यह यमक का ठीक उलटा है। इसमें मात्र शब्दों की आवृत्ति न होकर तात्पर्यमात्र के भेद से शब्द और अर्थ दोनों की आवृत्ति होती है।

लाटानुप्रास का उदाहरण

तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,

तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।

इन दो पंक्तियो में शब्द प्रायः एक-से हैं और अर्थ भी एक ही हैं।

प्रथम पंक्ति के ‘के पात्र समर्थ’ का स्थान दूसरी पंक्ति में ‘थी जिनके अर्थ’ शब्दों ने ले लिया है।

शेष शब्द ज्यों-के-त्यों हैं।

दोनों पंक्तियों में तेगबहादुर के चरित्र में गुरुपदवी की उपयुक्तता बतायी गयी है। यहाँ शब्दों की आवृत्ति के साथ-साथ अर्थ की भी आवृत्ति हुई है।

(घ्)श्रुत्यानुप्रास –

मुख के उच्चारण स्थान से सम्बंधित विशिष्ट वर्णो के समय को श्रुत्यानुप्रास कहते है।

पाप प्रहार प्रकट कई सोई।

भरि क्रोध जल जाइ न कोई।।

तेहि निसि में सीता पहँ जाई।

त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई।।

(च)अन्त्यानुप्रास –

जहां पद के अंत के एक वर्ण और एक ही स्वर की साम्यमुलक आवृत्ति हो। उसे अंत्यानुप्रास कहते है।

गुरु पद मृदु मंजुल अंजन।

नयन अमिय दृग दोष बिभंजन ।

Anupras Alankar Video

credit: Nidhi Academy; Anupras Alankar

आर्टिकल में अपने पढ़ा कि अनुप्रास अलंकार  किसे कहते हैं, हमे उम्मीद है कि ऊपर दी गयी जानकारी आपको आवश्य पसंद आई होगी। इसी तरह की जानकारी अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करे ।

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