Akbar-Birbal Stories in Hindi With Moral

सम्राट अकबर के राज दरबार के नव रत्नों में से एक बीरबल की बुद्धिमत्ता के बराबर कोई भी दरबार में नहीं था ।बीरबल का असली नाम महेश दास था । उन्होंने अपनी योग्यता के बल पर राजा अकबर के शाही दरबार में अपना स्थान बनाया और धीरे – धीरे राजा के सबसे प्रिय बन गए जिस कारण उन्हे अन्य दरबारियों की ईर्ष्या का पात्र बनाना पढ़ा । वे एक बहुत ही बुद्धिमानी लेखक एवं कवि भी थे ।

Akbar and Birbal Story in Hindi:

1. एक पेड़ दो मालिक

अकबर बादशाह दरबार लगा कर बैठे थे। तभी राघव और केशव नाम के दो व्यक्ति अपने घर के पास स्थित आम के पेड़ का मामला ले कर आए। दोनों व्यक्तियों का कहना था कि वे ही आम के पेड़ के असल मालिक हैं और दुसरा व्यक्ति झूठ बोल रहा है। चूँकि आम का पेड़ फलों से लदा होता है, इसलिए दोनों में से कोई उसपर से अपना दावा नहीं हटाना चाहता।

मामले की सच्चाई जानने के लिए अकबर राघव और केशव के आसपास रहने वाले लोगो के बयान सुनते हैं। पर कोई फायदा नहीं हो पाता है। सभी लोग कहते हैं कि दोनों ही पेड़ को पानी देते थे। और दोनों ही पेड़ के आसपास कई बार देखे जाते थे।

पेड़ की निगरानी करने वाले चौकीदार के बयान से भी साफ नहीं हुआ की पेड़ का असली मालिक राघव है कि केशव है, क्योंकि राघव और केशव दोनों ही पेड़ की रखवाली करने के लिए चौकीदार को पैसे देते थे।अंत में अकबर थक हार कर अपने चतुर सलाहकार मंत्री बीरबल की सहायता लेते हैं। बीरबल तुरंत ही मामले की जड़ पकड़ लेते है। पर उन्हे सबूत के साथ मामला साबित करना होता है कि कौन सा पक्ष सही है और कौन सा झूठा। इस लिए वह एक नाटक रचते हैं।

बीरबल आम के पेड़ की चौकीदारी करने वाले चौकीदार को एक रात अपने पास रोक लेते हैं। उसके बाद बीरबल उसी रात को अपने दो भरोसेमंद व्यक्तियों को अलग अलग राघव और केशव के घर “झूठे समाचार” के साथ भेज देते हैं। और समाचार देने के बाद छुप कर घर में होने वाली बातचीत सुनने का निर्देश देते हैं।

केशव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है कि आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजिये। यह खबर देते वक्त केशव घर पर नहीं होता है, पर केशव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर केशव को सुनाती है।

केशव बोलता है, “हां,हां, सुन लिया अब खाना लगा। वैसे भी बादशाह के दरबार में अभी फैसला होना बाकी है, पता नही हमे मिलेगा कि नहीं। और खाली पेट चोरों से लड़ने की ताकत कहाँ से आएगी, वैसे भी चोरों के पास तो आजकल हथियार भी होते हैं।”आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति केशव की यह बात सुनकर बीरबल को बता देता है।

राघव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है, “आप के आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजियेगा।”यह खबर देते वक्त राघव भी अपने घर पर नहीं होता है, पर राघव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर राघव को सुनाती है।

राघव आव देखता है न ताव, फ़ौरन लाठी उठता है और पेड़ की ओर भागता है। उसकी पत्नी आवाज लगाती है, अरे खाना तो खा लो फिर जाना राघव जवाब देता है कि, “खाना भागा नहीं जाएगा पर हमारे आम के पेड़ से आम चोरी हो गए तो वह वापस नहीं आएंगे” इतना बोल कर राघव दौड़ता हुआ पेड़ के पास चला जाता है।आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति बीरबल को सारी बात बता देते हैं।

दूसरे दिन अकबर के दरबार में राघव और केशव को बुलाया जाता है। और बीरबल रात को किए हुए परीक्षण का वृतांत बादशाह अकबर को सुना देते हैं जिसमे भेजे गए दोनों व्यक्ति गवाही देते हैं। अकबर राघव को आम के पेड़ का मालिक घोषित करते हैं। और केशव को पेड़ पर झूठा दावा करने के लिए कडा दंड देते हैं। तथा मामले को बुद्धि पूर्वक, चतुराई से सुल्झाने के लिए बीरबल की प्रशंशा करते हैं।

Moral:

  1. ठगी करने वाले व्यक्ति को अंत में दण्डित होना पड़ता है, इसलिए कभी किसी को धोखा ना दें।
  2. जो वक्ती परिश्रम कर के अपनी किसी वस्तु या संपत्ति का जतन करता है उसे उसकी परवाह अधिक होती है।

Akbar Birbal Stories in Hindi Short

2.तानसेन से ज्यादा मधुर संगीत किसका है ?

बादशाह Akbar को अनेक कलाओं से प्रेम था, परंतु उन्हें संगीत का ज्यादा शौक था। उनके दरबार के नौ रत्नों में से एक तानसेन थे, जो अपने संगीत की वजह से सम्मान से जाने जाते थे।

एक बार Akbar तानसेन के संगीत से बहुत खुश हुए और उन्होंने तानसेन से कहा, “तुम दुनिया के सबसे अच्छे कलाकार हो। तुम्हारा संगीत बहुत महान है, जिसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती।”तानसेन आभार के साथ अभिभूत थे, किंतु वह एक सामान्य व्यक्ति थे। उन्होंने कहा, “यह केवल आपकी राय है। दुनिया में बहुत से कलाकार मुझ से बेहतर हैं।”

अकबर ने कहा, “तानसेन मैंने बहुत संगीतकारों को सुना है। किंतु तुम्हारा संगीत उन सबसे बहुत अच्छा है।”
तानसेन ने कहा, “मेरे मालिक! फिर तो आपको मेरे गुरू स्वामी हरिदास को जरूर सुनना चाहिए। वह मुझसे बहुत अच्छा गाते हैं।”


अकबर ने बहुत उत्सुकता से कहा, “यदि ऐसा है तो मैं तुम्हारे गुरू का संगीत जरूर सुनूंगा। तुम्हें उनसे मेरे लिए संगीत गाने का अनुरोध करना होगा।”
तानसेन ने कहा, “मेरे मालिक! स्वामी हरिदास कभी दरबार में नहीं आते हैं और न ही वह आपके लिए गायेंगे। किंतु यदि आप मेरे साथ उनके घर जाएंगे, तो आप उनका संगीत सुन सकते हैं।” अकबर, बीरबल तानसेन के साथ स्वामी हरिदास के घर जाने को राजी हो गए।

अकबर स्वामी हरिदास के घर कुछ दिनों तक रूके किंतु गुरू ने उस बीच में कुछ भी नहीं गाया। अकबर अधीर हो रहे थे। उन्होंने तानसेन को बुलाया और कहा, “स्वामी हरिदास कब गायेंगे? मैं यहां चार दिन से हूं किंतु अब तक उन्होंने संगीत का एक शब्द तक नहीं गाया। लगता है मुझे बिना संगीत सुने ही वापस महल में जाना होगा।”
तानसेन ने कहा, “मेरे मालिक! गुरूजी केवल तभी गाते हैं जब उन्हें लगता है कि सही समय है। हमें धैर्य रखना चाहिए।”

फिर एक सुबह अकबर को एक बहुत ही मधुर स्वर ने नींद से जगा दिया। स्वामी हरिदास गाना गा रहे थे। उनकी आवाज इतनी गहरी और मीठी थी कि सम्राट पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो गये थे। उन्होंने तानसेन से कहा, “तुम सही थे। वास्तव मे स्वामी हरिदास तुमसे बेहतर हैं।”
अकबर (Akbar) ने अब वापस महल लौटने का निश्चय किया। रास्ते में उन्होंने बीरबल (Birbal) से कहा, “बीरबल, तानसेन का संगीत अपने गुरू के जैसा अच्छा क्यों नहीं है?”

बीरबल (Birbal) बोला, “जहांपनाह! क्योंकि तानसेन आपको खुश करने के लिए गाता है और स्वामी हरिदास भगवान को खुश करने के लिए गाते हैं।”

3.मूर्ख के सामने चुप रहना ही श्रेयस्कर है

एक बार अकबर बादशाह के उस्ताद पीर साहब मक्का से चलकर दिल्ली आए। रास्ता न जानने की वजह से उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। अकबर बादशाह ने उनकी बड़ी आवभगत की। कुछ दिन आनन्द लेकर पीर साहब मक्का लौट गए।जब पीर साहब चले गए तो अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा – “बीरबल! क्या तुम्हारे भी कोई गुरू हैं, जैसे कि मेरे पीर साहब हैं? यदि हैं तो वे कहां रहते हैं, कभी आते-जाते भी हैं या नहीं?”

बीरबल ने जवाब दिया – “जहांपनाह! मेरे भी गुरू हैं, लेकिन वह बाहर रहते हैं कहीं आते-जाते नहीं। हाल ही मैंने सुना है कि मेरे गुरूदेव किसी को कुछ बताते भी नहीं और कभी किसी से एक पैसा भी नहीं लेते। रूपये-पैसे का उन्हें लोभ नहीं है।”

यह सुनकर बीरबल के गुरू के प्रति अकबर बादशाह के मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई और उन्होंने बीरबल से अपने गुरू से मिलवाने का आग्रह किया।
अकबर बादशाह से बातें करके जब बीरबल रासते में आए तो उन्होंने देखा कि लकड़ी बेचने वाले एक बूढ़े ने परिश्रम करके लकड़ियों का एक गठ्टर बांधा हुआ है। वह सुबह से शाम तक इधर-उधर भटका, पर किसी ने भी उसे उचित मूल्य देकर वह गठ्टर नहीं खरीदा। लाचार होकर बूढ़ा लकड़हारा गठ्टर अपने धर वापस लिए जा रहा था।

पहले तो बीरबल ने उस लकड़ी बेचने वाले से लकड़ियों के उस गठ्टर का मूल्य पूछा, फिर उसे अपने घर ले गए और उससे बोले – “मालूम होता है कि तुम समय के कुच्रक में फसकर इस दीन अवस्था में पहुंचे हो।”

बीरबल ने उसे अच्छे साफ-सुथरे वस्त्रों और काली जटा इत्यादि से युक्त ब्राहाम्ण साधु बना दिया। उसके हाथ में रूद्राक्ष की माला दे दी। फिर एक बड़े मंदिर के पीछे मृगचर्म के आसन पर बैठाकर उससे बोला – “तुमसे मिलने बड़े-बड़े अमीर-उमराव आएंगे, पर उनसे तुम बिल्कुल मत बोलना।

तुम्हें कितनी ही बहुमूल्य वस्तुएं वे क्यों न दिखाएं, पर तुम उनकी तरफ आंख भी मत उठाना। तुमसे जो कुछ भी पूछें, उसका जवाब मत देना। बस अपने ध्यान में रहना और सिर्फ माला फेरते रहना। ध्यान रहे, यदि इसके अलावा तुमने कोई भी हरकत की तो तुम्हारी खैर नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारी हरकतों को देखता रहूंगा।”

बूढ़े लकड़हारे ने बीरबल की बातों को स्वीकार कर लिया। जब बीरबल को यकीन हो गया कि वह भलीभांति स्वांग कर सकता है, तब वह अकबर बादशाह के पास दरबार में गए। दरबार में उस समय सभी दरबारी उपस्थित थे।

बीरबल ने अकबर बादशाह को अपने गुरू के आने की शुभ सूचना दी और कहा – “पहले तो गुरूदेव ने दर्शन देने से इन्कार किया, पर मेरे खुशामद करने पर वह पधारे हैं, और मन्दिर के पिछले हिस्से में आसन जमाए हुए हैं। उन्होंने आप लोगों को दर्शन देना भी स्वीकार कर लिया है। लेकिन मुझे साथ आने को मना कर दिया है। यदि मैं हठ करके जाऊंगा तो हो सकता है, वह मुझे शाप दे दें। अतः आप और लोगों के साथ उनके दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।”

बीरबल को छोड़कर अकबर बादशाह के साथ सभी दरबारी गुरूदेव के दर्शन करने के लिए गए। अकबर बादशाह ने गुरूदेव के सामने जाकर सादर मस्तक झुकाया। फिर बैठकर उनसे पूछा – “गुरूजी! अपना निवास स्थान तथा शुभ नाम इस दास को भी बताने की कृपा करें।”गुरूदेव भी किसी ऐसे-वैसे के चेले नहीं थे। अकबर बादशाह की बातें सुनी-अनसुनी करके वह अपने ध्यान में ही रहे।अकबर बादशाह फिर बोले – “भगवन! मैं सारे हिंदुस्तान का बादशाह हूं और आपकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण करने में समर्थ हूं। आप कृपा करके एक बार मेरी ओर नजर उठाकर देख लें तो मैं आपको धन्य समझूंगा।”

इस पर भी जब गुरूदेव ने ध्यान नहीं दिया तो अकबर बादशाह ने दस हजार रूपये मूल्य का कड़ा, जिसे वह स्वयं पहने हुए थे, हाथ से उतारकर गुरूदेव के चरणों में यह सोचकर रख दिया कि लालच में शायद कुछ आशीर्वाद देकर इस बहुमूल्य कड़े को स्वीकार कर लें। परंतु जब कुछ नतीजा न निकला तो निराश होकर अकबर बादशाह वहां से उठ खड़े हुए और बोले – “जो आदमी अतिथि के साथ ऐसा व्यवहार करे, उस कठोर हद्य से बातें करना भी मूर्खता है।”

अकबर बादशाह को क्या पता था कि ऐसे मूर्ख से सामना होगा। उन्होंने वह कड़ा बीरबल के यहां भिजवा दिया, क्योंकि दान की वस्तु बादशाह के महल में कैसे आ सकती थी।अगले दिन गुरूदेव का सारा हाल सुनाकर अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा – “मूर्ख मिले तो क्या करना चाहिए।”बीरबल बोले – “उस समय चुप रहना ही अच्छा है।”बीरबल के इस जवाब से अकबर बादशाह की रही सही मर्यादा पर भी पानी पड़ गया। उनका विचार था कि ऐसी बात कहकर वह बीरबल के गुरू को मूर्ख साबित करेंगे, पर उल्टे खुद मूर्ख बने।

अकबर बादशाह को चुप देखकर बीरबल बोले – “जब मैंने पहले ही उनका स्वभाव आपको बता दिया था कि उन्हें रूपये-पैसे का लालच नहीं है, कभी किसी के दरवाजे पर वह नहीं जाते, और मेरे कहने पर बड़ी मुश्किल से तो वह मिलने को राजी हुए थे, फिर आपने उन्हें लालच क्यों दिया? आपने अपशब्द कहकर गुरू का अपमान किया है। आपको धन-दौलत का घमंड है, इसलिए वह आपसे नहीं बोले।”

बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत लज्जित हुए।

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