Hindi Essay प्रत्येक क्लास के छात्र को पढ़ने पड़ते है और यह एग्जाम में महत्वपूर्ण भी होते है इसी को ध्यान में रखते हुए hindilearning.in में आपको विस्तार से बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध को बताया गया है |
Table of Contents
बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – Essay On Baste Ka Badhta Bojh In Hindi
संकेत-बिंदु –
- भूमिका
- पुस्तकों का महत्त्व
- बस्ते का बढ़ता बोझ
- कम करने के उपाय
- उपसंहार
बचपन पर हावी बस्ते का बोझ (Bachpan Par Haavee Baste Ka Bojh) – The burden of dominate the childhood
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
भूमिका :
विदया के संबंध में कहा गया है- ‘सा विद्या या विमुक्तये।’ अर्थात् ‘विदया वही है जो हमें मुक्ति दिलाए’। इसी उददेश्य की प्राप्ति के लिए प्राचीन समय से ही विभिन्न रूपों में विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती रही है। वर्तमान समय में छात्र के बस्ते का बोझ इतना बढ़ गया है कि उसे मिलने वाली विद्या का साधन ही उसे दबाए जा रहा है। आज का छात्र, छात्र कम कुली ज़्यादा दिखने लगा है।
पुस्तकों का महत्त्व:
पुस्तकें ज्ञान प्राप्त करने का साधन होती हैं। उनमें तरह-तरह का ज्ञान भरा हुआ है। पुस्तकों के कारण शिक्षा प्रणाली आसान बन सकी है। प्राचीन काल में जब पुस्तकों का अभाव था तब रट्टा मारकर ही ज्ञान प्राप्त करना होता था। तब गुरुजी ने एक बार जो बता दिया उसे बहुत ध्यान से सुनना, समझना और दोहराना पड़ता था, क्योंकि तब आज की तरह पुस्तकें न थीं कि जब जी में आया खोला और पढ़ लिया। इसके अलावा पुस्तकों के कारण ही शिक्षा का इतना प्रचार-प्रसार हो सका है।
बस्ते का बढ़ता बोझ:
प्रतियोगिता और दिखावे के इस युग में माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी से जल्दी स्कूल भेज देना चाहते हैं। अब तो प्ले स्कूल के पाठ्यक्रम को छोड़ दें तो नर्सरी कक्षा से ही पुस्तकों की संख्या विषयानुसार बढ़ने लगती हैं। एक-एक विषय की कई पुस्तकें विद्यार्थियों के थैले में देखी जा सकती हैं। कुछ व्याकरण के नाम पर तो कुछ अभ्यास-पुस्तिका के नाम पर। हद तो तब हो जाती है जब शब्दकोश तक बच्चों को विद्यालय ले जाते देखा जाता है।
अभिभावकों को दिखाने के लिए पहली कक्षा से ही कंप्यूटर और सामान्य ज्ञान की पुस्तकें भी पाठ्यक्रम में लगवा दी जाती हैं। अभिभावक समझता है कि उसका बच्चा पहली कक्षा से ही कंप्यूटर पढ़ने लगा है, पर इन पुस्तकों के कारण बस्ते का बढ़ा बोझ वह नज़रअंदाज कर जाता है।
बढ़े बोझ वाले बस्ते का असर:
भारी भरकम बस्ता उठाए विद्यालय जाते छात्रों को देखना तो अच्छा लगता है, पर इस वजन को उठाते हुए उनकी कमर झुक जाती है। वे झुककर चलने को विवश रहते हैं। इससे कम उम्र में ही उन्हें रीढ़ की हड्डी में दर्द रहने की समस्या शुरू हो जाती है। शहरी खान-पान में फास्ट फूड की अधिकता कोढ़ में खाज का काम करती है। इसका सीधा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है और उन्हें अल्पायु में ही चश्मा लग जाता है।
बस्ते का बोझ बढ़ने का कारण:
बस्ते का बोझ बढ़ने के मुख्यतया दो कारण हैं-पहला यह कि अभिभावक भारी भरकम बस्ते को देखकर खुश होते हैं कि उनका बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में ज़्यादा पढ़ रहा है। दूसरा कारण हैं-प्राइवेट स्कूल के प्रबंधकों की लालची प्रवृत्ति। वे पाठ्यक्रम में अधिक से अधिक पुस्तकें शामिल करवा देते हैं, ताकि अभिभावकों से अधिक से अधिक धन वसूल कर अपनी जेबें भर सकें।
बोझ कम करने के उपाय:
इस बोझ को कम करने की दिशा में अभिभावकों को जागरूक बनकर अपनी सोच में बदलाव लाना होगा कि, भारी बस्ते से ही अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। इसके अलावा शिक्षण संस्थानों में प्रोजेक्टर आदि के माध्यम से पढ़ाने की व्यवस्था हो ताकि पुस्तकों की ज़रूरत कम से कम पड़े। इसके अलावा छात्रों को एक दिन में दो या तीन विषय ही पढ़ाए जाएँ, ताकि छात्रों को कम से कम पुस्तकें लानी पड़े।
उपसंहार:
अब सोचने का समय आ गया है कि बस्ते का बोझ किस तरह कम किया जाए। बस्ते का बढ़ा बोझ बच्चों का बचपन ही नहीं निगल रहा है, बल्कि उन्हें शारीरिक रूप से विकृत भी बना रहा है। शिक्षाविदों को अपनी राय सरकार तक तुरंत पहुँचानी चाहिए।
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