प्रोटीन की परिभाषा क्या है | गुण | लक्षण |वर्गीकरण | प्रकार | प्रोटिन की संरचना | विकृतिकरण

प्रोटीन :

 α अमीनो अम्लों के रेखीय बहुलक प्रोटीन कहलाते है।
प्रोटीन शरीर की वृद्धि एवं मरम्मत में सहायक होते है।
प्रोटीन ग्रीक भाषा के प्रोटियस से लिया गया है जिसका मतलब होता है अति मत्वपूर्ण।
अत: प्रोटीन सजीव के शरीर के लिए अतिआवश्यक यौगिक है , प्रोटीन का जल अपघटन करने पर पोली पेप्टाइड प्राप्त होते है , जो आगे जल अपघटन करने पर α अमीनो अम्ल देते है अत: प्रोटीन α अमीनो अम्लों का बहुलक होता है।
प्रोटीन के सामान्य लक्षण

  • प्रोटिन उच्च अणुभार वाले बहुलक होते है।
  • प्रोटीन में एक फ्री -COOH एवं -NH2 समूह होता है , अत: इस कारण प्रोटीन का अणु उभयधर्मी होता है।
  • प्रोटीन L-विन्यास वाले α एमीनो अम्लों से मिलकर बनते है अत: ये प्रकाशिक सक्रीय होते है।
  • प्रोटीन के जलने व गलने , सड़ने पर इनका ऑक्सीकरण हो जाता है जिससे एमीन , N2O , H2O आदि बनते है।
  • वे पॉली पेप्टाइड जिनका आण्विक द्रव्यमान 10000 से अधिक होता है प्रोटीन कहलाते है।

प्रोटीन का वर्गीकरण / प्रकार (types of protein)
1. आण्विक संरचना एवं व्यवहार के आधार पर : इस आधार पर प्रोटीन 2 प्रकार के होते है –
(a) रेशेदार प्रोटीन : ये प्रोटिन जल में अविलेय परन्तु प्रबल अम्ल व क्षार में विलेय होते है।
ये मजबूत व रेशेदार संरचना वाली होती है , इनमे अन्तराण्विक H बंध पाए जाते है।
उदाहरण : मांशपेशियों में मायोशीन , बाल व नाखून में क्रेटीन व रेशो में फाइब्रीन प्रोटीन।
(b) गोलाकार प्रोटीन : ये प्रोटीन जल , अम्ल , क्षार और लवण में विलेय होती है।
एमीनो अम्लों के मध्य तिर्यक बंध बनने से इनका निर्माण होता है , इनकी आकृति गोलाकार होती है।
उदाहरण : अंडे में एल्ब्यूमिन , हीमोग्लोबिन में ग्लोबिन , दूध में कैसीन , एंजाइम , हार्मोन्स व प्रतिजैविक
2. जल अपघटन के प्रति व्यवहार के आधार पर या संघठन के आधार पर :
(a) सरल प्रोटिन : ये प्रोटीन जल अपघटन पर केवल α अमीनो अम्लों का मिश्रण देते है।
उदाहरण : एल्ब्यूमिन , क्रिटेनीन , ग्लुटेनीन , ग्लोब्युलिन
(b) संयुग्मित प्रोटीन : ये प्रोटीन जल अपघटन पर α अमीनो अम्लों के साथ अप्रोटिनीय भाग भी देते है जिसे प्रोस्थैटिक समूह कहते है।
प्रोस्थैटिक समूह प्रोटीन की जैविक क्रियाशीलता को नियंत्रित करता है।
(c) व्युत्पन्न प्रोटीन : ये प्रोटीन जल अपघटन पर lower प्रोटीन , प्रोटिएज , पेप्टोनस एवं पोली पेप्टाइड देते है।
पेप्टोनस पोली पेप्टाइडस एवं सरल प्रोटीन आदि जल में विलेय होते है।

प्रोटीन की संरचना (structure of protein)

प्रोटीन की संरचना निम्न 4 प्रकार की होती है

1. प्राथमिक संरचना : प्रोटीन की प्राथमिक संरचना को सर्वप्रथम सेंगर ने इन्सुलिन में खोजा था।

इसमें केवल सहसंयोजक बंध होते है।

प्राथमिक संरचना में प्रोटीन में उपस्थित विभिन्न प्रकार के एमीनो अम्ल , उनकी संख्या तथा उनके जुड़ने का अनुक्रम व्यक्त किया जाता है।

उदाहरण – प्रत्येक प्रकार की प्रोटीन में एमीनो अम्लों के जुड़ने का क्रम विशिष्ट होता है जो प्रोटीन की जैविक सक्रियता के लिए उत्तरदायी होता है। जैसे रक्त में पाये जाने वाले हीमोग्लोबिन की ग्लोबिन प्रोटीन स्वसन द्वारा ग्रहण की गयी ऑक्सीजन को फेफड़ो से विभिन्न कोशिकाओं तक पहुचाती है , यदि इसमें एक भी एमीनो अम्ल क्रम से परिवर्तन हो जाता है तो सिकिल शैल एनीमिया रोग हो जाता है।

हीमोग्लोबिन में 574 एमीनो अम्ल इकाइयाँ होती है।

2. द्वितीयक संरचना : प्रोटीन की द्वितीयक संरचना में सहसंयोजक बंध एवं H-बंध उपस्थित होते है।

द्वितीयक संरचना में पेप्टाइड बंधन के आधार पर दो भिन्न विन्यास होते है।

(a) α हेलिक्स संरचना

(b) β  संरचना

(a) α हेलिक्स संरचना :

प्रोटीन की इस संरचना में पोली पेप्टाइड श्रंखला मुड़े हुए रिबन के समान सर्पिलाकार होकर हैलिक्स संरचना बनाती है।  इस श्रंखला में विभिन्न भाग परस्पर H बन्ध द्वारा जुड़े होते है , जिससे हेलिक्स में मुक्त घूर्णन नहीं होता है , इस कारण हेलिक्स दृढ होता है।  प्रोटीन में सभी हेलिक्स दक्षिणावर्ती होती है।

(b) β  संरचना :

इस संरचना में पोली पेप्टाइड श्रंखलाएं खुली अवस्था में एक दूसरे से अंतराण्विक H बंधो व अन्य आबंधो से जुडी रहती है एवं प्रति समान्तर क्रम में एक दूसरे से जुड़ सकती है।

ये चद्दर नुमा संरचनाएँ एक दूसरे पर आसानी से फिसल सकती है इसलिए इस प्रकार की संरचना प्रोटीन मुलायम होती है।

3. तृतीयक संरचना :

विभिन्न द्वितीयक संरचनाएं एक दूसरे पर अध्यारोपित होकर प्रोटीन की तृतीयक संरचना बनाती है।

इस संरचना में पोली पेप्टाइड श्रृंखला विशिष्ट पदों के रूप में सुव्यवस्थित क्रम में उपस्थित होती है।

तृतीयक संरचना द्वारा प्रोटीन के अणु का सम्पूर्ण आकार निर्धारित होता है , यह संरचना प्रोटीन के विशिष्ट कार्यो के लिए महत्वपूर्ण होती है।

प्रोटीन की तृतीयक संरचना में विभिन्न पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के मध्य निम्न चार बंध पाए जाते है

  • H बंध
  • डाई सल्फाइड बंध
  • आयनिक बंध
  • जल विरोधी बंध या वांडरवाल बंध

4. चतुर्थक संरचना : यदि किसी प्रोटीन की संरचना में दो या अधिक पोली पेप्टाइड श्रृंखलाएं हो और वे परस्पर सहसंयोजक बन्धो द्वारा संयोजित नहीं होकर अन्य बन्धो द्वारा जुडती हो तो ऐसी संरचना को चतुर्थक संरचना प्रोटीन कहा जाता है , जैसे हीमोग्लोबिन का ग्लोबिन प्रोटीन।

प्रोटीन का विकृतिकरण (denaturation of proteins in hindi ):

प्रोटीन को गर्म किया जाता है या एल्कोहल , क्षार भारी लवण अथवा प्रिक्रिक अम्ल आदि के साथ अभिकृत किया जाता है तो प्रोटीन का स्कंदन या अवक्षेपण हो जाता है , इसे प्रोटीन का विकृतिकरण कहते है।

विकृतिकरण में प्रोटीन की प्राथमिक संरचना अपवर्तित रहती है इसमें केवल द्वितीयक एवं तृतीयक संरचनाएँ परिवर्तित होती है जिससे प्रोटीन की जैविक सक्रियण नष्ट हो जाती है।

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