थायराइड ग्रंथि | हार्मोन | कार्य | स्थिति | संरचना | प्रभाव | पैराथाइरॉइड ग्रंथि | थाइमस | पीनियल काय

संरचना : यह गुलाबी रंग की H आकार की ग्रन्थि है , यह द्विपालित ग्रन्थि है , दोनों आपस में इस्थमस द्वारा जुडी रहती है , मनुष्य में इस ग्रन्थि का भार 25-30gm तक होता है तथा लम्बाई 5cm तथा चौड़ाई 3cm होती है |  थॉयराइड ग्रन्थि में अनेक पुटिकाएँ पायी जाती है , जिन्हें एसिनी कहते है | एसिनी में कोलाइडी पदार्थ पाया जाता है जिसे आयोडोथायरो ग्लोब्यूलिन कहते है |

थॉयराइड ग्रन्थि के हार्मोन

  • थॉयरॉक्सिन / टेट्रा आयोडोथायरोनिन (T4) : यह थॉयराइड ग्रन्थि की पुटकीय कोशिकाओ द्वारा निर्मित होता है , इसकी कुल मात्रा 65-90% होती है |
  • ट्राइ आयोडोथायरोनिन (T3) : यह आयोडीन युक्त हार्मोन है , यह भी पुटकिय कोशिकाओ द्वारा निर्मित होता है , यह T4 की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है |
  • केल्सिटोनिन : यह ऑक्साइड की पैराफ़ॉलीक्यूलर कोशिकाओ द्वारा निर्मित होता है |

थॉयराइड ग्रन्थि के कार्य

  • यह उपापचयी दर में वृद्धि करता है |
  • कोशिका ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा उत्पादन को बढाता है |
  • यह ग्लूकोज अवशोषण , प्रोटीन संश्लेषण व शरीर के ताप में वृद्धि करता है |
  • यह वृद्धि व विभेदन में सहायक है |
  • यह एड्रिनिलिन व नॉरएड्रिनिलिन की क्रियाविधि को बढाता है |
  • यह ह्रदय स्पन्दन व श्वसन दर में वृद्धि करता है |
  • यह टेडपोल को व्यस्क में कायांतरित करने में भूमिका निभाता है |

कमी से :

  1. अवटुवामनता / क्रेटीनता
  2. हाशीमाटो रोग
  3. घेंघा / गलगंड
  4. अवटु अल्पक्रियता / मिक्सिडीमा
  5. अवटुवामनता / क्रेटीनता : इस विकार के दौरान वृद्धि रुक जाती है , बौनापन , उपापचय दर कम , निम्न वृद्धि , त्वचा सुखी व मोटी हो जाती है तथा रोगी बंध्यता का शिकार हो सकता है |
  6. घेंघा / गलगण्ड : आयोडीन की कमी होने के कारण थॉयराइड ग्रन्थि फूल जाती है जिसे घेंघा कहते है |
  7. अवटुअल्पक्रियता / मिक्सिडीमा : इस विकार के दौरान उपापचय दर , शरीर का ताप , ह्रदय गति व रुधिर दाब कम हो जाते है |
  8. हाशीमाटो रोग : जब शरीर में थॉयरोक्सिन की कमी हो जाती है तो उपचार हेतु ली जाने वाली दवायें प्रतिदिन की तरह कार्य कर ग्रन्थि को ही नष्ट कर देती है इसे थॉयराइड की आत्महत्या कहते है |

अधिकता के प्रभाव

  1. नेत्रोत्सेंधी / एक्सोप्लेल्मिक : इस विकार के दौरान नेत्र गोलको के नीचे श्लेष्मा एकत्रित हो जाता है जिससे नेत्र गोलक बाहर की ओर उभर जाते है जिससे चेहरा भयानक दिखाई देने लगता है |
  2. प्लूमर रोग : थॉयरोक्सिन की अधिकता के कारण थॉयराइड ग्रन्थि पर अनेक गांठे बन जाती है जिससे प्लूमर रोग कहते है |
  3. अन्य प्रभाव : उपापचय दर में वृद्धि , शरीर के तापमान में वृद्धि , ह्रदय दर में वृद्धि , रक्त दाब में वृद्धि , पसीना अधिक आना , स्वभाव चिडचिडा हो जाना मुख्य लक्षण है |

पैराथाइरॉइड ग्रंथि (parathyroid gland) :

स्थिति : यह एक जोड़ी होती है तथा थॉयरॉइड ग्रन्थि के पृष्ठ भाग पर धंसी रहती है , इसकी खोज रेनार्ड ने की थी |

परिमाप : यह 6-7mm लम्बी व 3-4 mm चौड़ी होती है , इसका भार 0.01-0.03gm तक होता है |

संरचना : यह मटर के दानो के समान व लाल रंग की होती है |

हार्मोन : पैराथार्मोन , जिसे कॉलिप का हार्मोन भी कहते है |

कार्य : यह वृक्क व आंत्र से कैल्शियम आयनों के अवशोषण को बढाता है , अस्थियो से कैल्शियम व फास्फेट के प्रवाह को प्रेरित करता है | यह फास्फेट के उत्सर्जन को बढाता है , रक्त में कैल्शियम आयनों व फास्फेट की मात्रा का नियमन करता है |

कमी से :

  • हाइपोकैल्मिमिक टिटेनी : रक्त में कैल्शियम आयनों की कमी व फास्फेट की मात्रा बढ़ जाती है , इस रोग के दौरान तंत्रिका व पेशी क्रिया में वृद्धि हो जाती है , जिससे रोगी के शरीर में जकडन व एंठन होने लगती है |

अधिकता से :

  • ऑस्टियोसिस फाइब्रोसा : इस विकार के दौरान हड्डियाँ विकृत व कमजोर हो जाती है |

थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland):

स्थिति : यह ग्रन्थि ह्रदय के आगे ट्रेकिया (श्वासनली) के समीप स्थित होती है |

संरचना : यह चपटी , गुलाबी व द्विपालित ग्रन्थि है , इसे T-लिम्पोसाइट का प्रशिक्षण केन्द्र भी कहा जाता है |

हार्मोन : थाइमोसीन

कार्य : यह प्रतिरक्षा तंत्र के निर्माण में सहायक है , यह जीवाणुओं को नष्ट करने हेतु लिम्पोसाइट को प्रेरित करता है , वृद्ध अवस्था के दौरान थाइमस ग्रन्थि का हास (विनाश) होने लगता है | थाइमोसीन का स्त्राव कम या बंद हो जाता है जिससे वृद्ध अवस्था के दौरान प्रतिरक्षा तन्त्र कमजोर हो जाता है |

पीनियल काय (pineal body) :

स्थिति : यह अग्र मस्तिष्क के पश्च भाग की सतह के बीच थैलेमस से निकले एक खोखले वृन्त से जुडी रहती है |

उद्दभव : इसका उद्भव एक्टोडर्म द्वारा होता है |

संरचना : यह पायोमीटर झिल्ली से ढकी हुई सफ़ेद व चपटी ग्रन्थि है तथा इसका वजन 150 मिलीग्राम होता है |

हार्मोन : यह मिलैटोनिन हार्मोन स्त्रवित करती है , तेज प्रकाश में इस हार्मोन का स्त्राव कम होता है तथा अंधकार में स्त्राव अधिक होता है |

कार्य व प्रभाव :

यह त्वचा के रंग को नियन्त्रित करता है , कम स्त्राव से बच्चो में यौवनावस्था शीघ्र आ जाती है , इस अधिक स्त्राव से जननांगो का विकास मंद हो जाता है |

Remark:

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