अप्रकाशिक | प्रकाशहीन अभिक्रिया | CO2 के प्राथमिक ग्राही | केल्विन बैन्सन चक्र | C3 चक्र | हैच स्लैक चक्र | C4 चक्र

अप्रकाशिक / प्रकाशहीन अभिक्रिया / CO2 के प्राथमिक ग्राही : प्रकाश संश्लेषण में सम्पन्न होने वाली यह क्रिया हरित लवक के स्ट्रोमा में संपन्न होती है।  इसमें प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है , इस प्रक्रिया में वायुमण्डल से अवशोषित CO2 विभिन्न एंजाइम द्वारा अपचयित होकर कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करती है , इस प्रक्रिया को कार्बन स्थिरीकरण कहा जाता है , पादपों में कार्बन स्थिरीकरण निम्न प्रक्रियाओं द्वारा संपन्न होता है –

1. केल्विन बैन्सन चक्र / C3 चक्र 

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में CO2 का कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तन का पथ केल्विन बेंसन व साथियो ने 1946-1953 के मध्य में बताया था , इस प्रक्रिया में सबसे पहले बनने वाला स्थिर यौगिक तीन कार्बन परमाणु युक्त 3-फास्फोग्लिसरिक अम्ल था।

इसलिए इस चक्र को C3 चक्र भी कहा जाता है।

इस कार्य के केल्विन व बेन्सन को 1961 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया।

केल्विन चक्र तीन चरणों में पूर्ण होता है –

  • कार्बोक्सिलिकरण : इसमें CO2 का प्राथमिक ग्राही 5- कार्बन परमाणु युक्त राइबुलोज 1,5 – बहुफास्फेट (RuBP) होता है जो CO2 के 1 अणु से संयोग कर मध्यवर्ती उत्पाद 3-फास्फोग्लिस्रिक अम्ल के दो अणु बनाता है | यह 3-कार्बन परमाणु युक्त होता है , यह क्रिया RuBP कर्बोक्सिलेज , ऑक्सीलेज एन्जाइम की उपस्थिति में होती है जिसे रुबिस्को भी कहते है |
  • अपचयन : इसमें ATP के दो अणु व NaDPH के 2-अणुओं का उपयोग होता है , जिससे ग्लुकोज के 1 अणु का निर्माण होता है |
  • पुनरुद्भवन / RUBP की पुन: उत्पत्ति : केल्विन चक्र जारी रखने के लिए PGA से ATP का उपयोग कर पुन: राइबुलोज 1,5 फास्फेट प्राप्त किया जाता है | इस प्रक्रिया में ग्लूकोज के 1 अणु के संश्लेषण हेतु 6 अणु CO2 तथा 6 ही केल्विन चक्र संपन्न होते है |

हैच स्लैक चक्र / C4 चक्र : इस चक्र में पहला स्थायी यौगिक 4-c युक्त डाइकर्बोक्सिलिक अम्ल बनता है अत: C4 चक्र भी कहते है , सन 1957 में कोर्ट चोक व सहयोगियों ने गन्ने के पादप में C4 चक्र का पता लगाया | यह चक्र एकबीजपत्री पादपो जैसे मक्का , गन्ना , बाजरा आदि के अतिरिक्त कुछ द्विबीज पत्री पादपों जैसे अमरेंथस , युर्फोबिया व कई खरपतवारों में पाया जाता है |

वे पौधे जिनमें C4 चक्र पाया जाता है , C4 पौधे कहलाते है |

C4 पौधों की विशेषता : C4 पौधों की पत्तियों में दो प्रकार की प्रकाश संश्लेषी कोशिकाएँ पायी जाती है , जिन्हें क्रमशः पर्णमध्योत्तक व पूल आच्छाद कोशिकाएँ कहते है , पूल आच्छाद कोशिकाएँ संवहन बंडल पर माला के समान आच्छाद बनाती है | पत्तियों की इस प्रकार की शारीरिकी फ्रेंज शारिरिकी कहलाती है | C4 पौधों में प्रकाशिक अभिक्रिया पर्णमध्योत्तक में तथा CO2 का स्थिरीकरण पुल आच्छाद कोशिकाओ में होता है , इस चक्र की निम्न विशेषताएं है –

  1. यह दो प्रकार की कोशिकाओं के संयोग से संपन्न होता है |
  2. इसमें प्रकाश – श्वसन अनुपस्थित होता है |
  3. पुल आच्छाद कोशिकाओं में CO2 की सांद्रता बढ़ जाती है जो कर्बोक्सिलिकरण में संयोग करती है तथा प्रकाश श्वसन को रोकती है |

C4 चक्र की क्रियाविधि :

वातावरण से प्राप्त CO2 पर्णमध्योत्तक कोशिकाओ में उपस्थित 3-C युक्त फास्फोइनोल पाइरुवेट (3C) से संयोग करती है | यह क्रिया PEP कार्बोक्सीलेज एंजाइम की उपस्थिति में होती है , परिमाण स्वरूप 4C युक्त ऑक्सेलोएसिटिक अम्ल (OAA) बनता है , जो 4C युक्त मैलिक अम्ल में बदल जाता है , मैलिक अम्ल पूल आच्छाद कोशिकाओ में प्रवेश कर विघटित हो जाता है | जिससे CO2 मुक्त हो जाती है तथा 3C युक्त पाइरुवेट बनता है , CO2 केल्विन चक्र में प्रवेश कर शर्करा बनाती है जबकि पाइरुवेट पुन: पर्णमध्योत्तक में प्रवेश कर फास्फोइनोल पाइरुवेट में बदल जाता है जो चक्र को जारी रखेगा |

C3 और C4 चक्र में अन्तर (c3 and c4 plants in hindi) :-

लक्षणC3 चक्रC4 चक्र
1.       अनुकूलन ताप10-25 डिग्री सेल्सियस30-45 डिग्री सेल्सियस
2.       क्रेज शारीरिकीअनुपस्थितउपस्थित
3.       CO2 स्थिरीकरण स्थलकेवल पर्णमध्योत्तक कोशिकाओं में होती हैपर्णमध्योत्तक व पूल आच्छाद कोशिकाओ में होती है
4.       प्रथम स्थायी उत्पादPGA (3-कार्बन युक्त)ऑक्सेलोएसिटिक अम्ल (4-कार्बन युक्त )
5.       CO2 स्थिरीकरण पथकेल्विन बेंसन चक्रकेल्विन बेनसन व हैच स्लैक चक्र
6.       CO2 का ग्राहीRuBP (5 कार्बन चक्र )PEP (3 कार्बन युक्त)
7.       मुक्त एंजाइमरुबिस्को (RUBISCO)PEP कर्बोसीलेज व रुबिस्को
8.       CO2 स्थिरीकरण की दरकमअधिक
9.       प्रकाश श्वसनअधिक होता हैकम होता है
10.    उत्पादकताकम होती हैअधिक होती है

ग्लाइकोलेट चक्र / CO2 चक्र / प्रकाश श्वसन

यह क्रिया केवल C3 पौधो में होती है , यह हरित लवक परऑक्सीसोम व माइट्रोकोंड्रिया में संपन्न होती है , इसमें सर्वप्रथम 2C युक्त पदार्थ ग्लाइकोलेट बनता है , इसलिए इसे C2 चक्र / प्रकाश श्वसन अथवा ग्लाइकोलेट चक्र भी कहते है | इस चक्र का अध्ययन सर्वप्रथम डेकर व टीओ ने किया था |

यह हरे पौधों में प्रकाश की उपस्थिति में होने वाली क्रिया है जिसमें पौधे ऑक्सीजन ग्रहण कर बिना ऊर्जा निर्माण किये कार्बनिक पदार्थो का ऑक्सीकरण करते है तथा CO2 मुक्त करते है अत: इस क्रिया में श्वसन की तरह भोज्य पदार्थों का विखंडन तो होता है परन्तु ऊर्जा मुक्त नहीं होती है | इस कारण इसे नष्टकारी क्रिया भी कहा जाता है , इस क्रिया में CO2 की अधिकता के कारण रुबिस्को ऑक्सीलेज एंजाइम की तरह कार्य करने लगता है जिससे 2-कार्बन युक्त ग्लाइकोलेट बनता है |

प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक :-

ब्लैकमैन (1905) के सीमाकारी कारकों के नियम के अनुसार यदि कोई प्रक्रिया अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है तो उस प्रक्रिया की दर सबसे कम मात्रा में उपस्थित कारक पर निर्भर करती है जैसे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए प्रकाश उपलब्ध है परन्तु CO2 कम है तो CO2 सीमाकारी कारक बन जाता है |

  • प्रकाश (light) : प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश स्पेक्ट्रम के दृश्य भाग (400nm-700nm) में ही संपन्न होती है , प्रकाश संश्लेषण की अधिकतम दर दृश्य स्पेक्ट्रम के लाल भाग में सर्वाधिक , उसमें कम नीले रंग में होता है | हरे रंग के प्रकाश स्पेक्ट्रम में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है , प्रकाश संश्लेषण की दर प्रकाश की तीव्रता के साथ साथ बढती है परन्तु उच्च प्रकाश तीव्रता पर प्रकाश संश्लेषण की दर घट जाती है क्योंकि या तो प्रकाश संश्लेषण में भाग लेने वाले अन्य कारक सीमाकारी हो जाते है या क्लोरोफिल वर्णको का विनाश हो जाता है |

ताप (Temperature) : प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तापक्रम की काफी सीमाओं में संपन्न होती है , कुछ मरुद्भिद पादपों में 55 डिग्री सेल्सियस पर भी प्रकाश संश्लेषण होता है , अत्यधिक तापक्रम पर प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी आती है |

कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) : वायुमंडल में CO2 की मात्रा 0.03% होती है जो दूसरी गैसों की तुलना में कम है , पादपों में जब दूसरे सीमाकारी नहीं हो तब CO2 की सान्द्रता 0.05% तक बढ़ने के साथ साथ प्रकाश संश्लेषण की दर बढती है परन्तु बाद में कम हो जाती है |

जल (water) : पौधों द्वारा मृदा से अवशोषित जल का केवल 1% भाग ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में उपयोग होता है | मृदा जल की अत्यधिक कमी होने के कारण जल सिमाकरी कारक बन जाता है , जल अप्रत्यक्ष रूप से दो प्रकाश से प्रभावित करते है |

  • जल की कमी के कारण पौधों की पत्तियों के रन्ध्र बंद हो जाते है जिससे CO2 सान्द्रता कम हो जाती है |
  • जल की कमी से पत्ती का जल विभव कम हो जाता है |

Remark:

दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे|


यदि आपको https://hindilearning.in वेबसाइट में दी गयी जानकारी से लाभ मिला हो तो आप अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कर सकते है |

हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *