संघ सिलेन्ट्रेटा |नाइडेरिया | टीनोफोरा | प्लेटीहोल्मिन्थिम

संघ सिलेन्ट्रेटा (Coelenterata) / नाइडेरिया : ल्यूकर्ट ने 1847 में सीलेन्ट्रेटा संघ की स्थापना की।  हेरचेक ने 1878 में इस संघ का नाम नाइडेरिया रखा।  इस संघ में लगभग 10000 जातियां ज्ञात है।

सामान्य लक्षण :
1. इस संघ के सदस्य समुद्री होते है।
2. ये जंतु एकल , निवही , स्थानबद्ध या स्वतंत्र होते है।
3. ये बहुकोशिकीय , अरीय सममित व द्विकोरिक जंतु होते है।
4. इनमें उत्तक स्तर का शारीरिक संगठन होता है।
5. शरीर के मध्य से शीर्ष तक मुख्य गुहा पाई जाती है जिसे सिलेन्ट्रोन या जठरगुहा कहते है।
6.शरीर के शीर्ष पर मुख होता है जो मुख व गुदा दोनों का कार्य करता है।
7. मुख के चारों ओर स्पर्शक पाए जाते है जो शिकार पकड़ने व गमन में सहायक होते है।
8. देहभित्ति पर वंश कोशिकाएँ पायी जाती है , जो आधार से चिपकने , आत्मरक्षा करने तथा भोजन पकड़ने में सहायता करता है।
9. इनमे बाह्य कोशिकीय व अन्तकोशिकीय पाचन होता है।
10. ये प्राणी द्विरुपी होते है जिन्हें जीवक कहते है।
बेलनाकार अलैंगिक अवस्था वाले स्थानबद्ध प्राणी पॉलिप कहलाते है।
ध्वत्राकार लैंगिक अवस्था वाले स्वतंत्र प्राणी मेड्यूसा कहलाते है।
11. इनमें अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा तथा लैंगिक जनन युग्मको के संलयन द्वारा होता है।
12. परिवर्ध अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है अर्थात लार्वा अवस्था पाई जाती है।
13. लार्वा को  प्लैनुला कहते है।
14. पॉलिप व मेड्यूसा में पीढ़ी एकान्तरण पाया जाता है।
उदाहरण
फाइसेलिया (पुर्तगाली युद्ध मानव)
एडमासिया (समुद्री एनिमोन )
पेनेटयुला (समुद्री पेन)
जोरगोनिया (समुद्री व्यंजन )
मैडरिन (ब्रेन कोरल)

संघ – टीनोफोरा (Ctenophora)

1. टिनोफोरा नाम एसकेबोल्ट द्वारा दिया गया।

2. इसके सदस्य को कंगकजैली या समुद्र अखरोट कहते है।

3. इस संघ के सभी सदस्य समुद्री होते है।

4. इन जन्तुओं में अरीय सममिति द्विकोरिक तथा उत्तक स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है।

5. इनके शरीर में 8 काम्ब या पश्चामी कंगत पट्टीयां पायी जाती है , जो चलन में सहायक है।

6. इनमे पाचन अंत: कोशिकीय या अंतरा कोशिकीय प्रकार का होता है।

7. ये जंतु जीव संदीप्ति प्रकट करते है।

8. श्वसन व उत्सर्जन सामान्य सतह द्वारा होता है।

9. ये उभयलिंगी प्राणी होते है।

10. इनमे केवल लैंगिक जनन होता है तथा बाह्य निषेचन होता है।

11. परिवर्धन अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है अर्थात लार्वा अवस्था पायी जाती है , जिसे सिडिपिड कहते है।

उदाहरण – टिनीप्लाज्मा , प्यूलरोब्रेकिया

संघ – प्लेटीहोल्मिन्थिम (Platyhelminthes)

1. प्लैटीहेल्मिन्थेस की स्थापना गेंगेनबार ने की।

2. इन्हे चपेटकृमि कहा जाता है।

3. ये मनुष्य व अन्य प्राणियों में अन्त: परजीवी के रूप में पाये जाते है।

4. इनमें द्विपाशर्व सममिति , त्रिकोरिक , अगुही तथा अंग स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है।

5. इनके शरीर पर क्यूटीकल पायी जाती है जो परजीवीता का अनुकूलन है।

6. इनमे अंकुश तथा चूषक पाये जाते है जो खाद्य पदार्थ चुशने व चिपकने में सहायक है।

7. परासरण नियंत्रण व उत्सर्जन ज्वाला कोशिकाओं द्वारा होता है।

8. ये जन्तु उभयलिंग होते है तथा आंतरिक निषेचन होता है।

9. इनमे परिवर्धन अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है , इनमे कई लार्वा अवस्थाएं पाई जाती है जैसे सर्केरिया

10. प्लैनैरिया में पुनरुदभवन की अपार क्षमता होती है।

उदाहरण – टिनिया सोलेनियम , फेसि ओला हिपेटिका , प्लेनैरिया आदि।

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