वनस्पति जगत क्या है | परिभाषा | शैवाल) , क्लोरोफाइसी | फियोफाइसी | रोडोफाइसी

वनस्पति जगत (plant kingdom in hindi  )
1. कृत्रिम वर्गीकरण : थ्रियोफ्रेस्ट्स , सिसलपिनो व केरोल्स लिनियस का वर्गीकरण कृत्रिम वर्गीकरण पर आधारित है।  इस वर्गीकरण में कृत्रिम गुणों को ध्यान में रखा गया है।  इस वर्गीकरण में कई पादप समानताएँ रखते हुए भी दूर के वर्गों में रख दिए जाते है तथा कई जीव असमानताएं रखते हुए भी पास पास रख दिए जाते है।

2. प्राकृतिक वर्गीकरण –  यह वर्गीकरण जीवों के प्राकृतिक गुणों के साथ साथ आंतरिक गुणों जैसे शरीर संरचना , भ्रूण विकास , पादप संरचना व रसायन को भी ध्यान में रखा जाता है।  बैथम व हुकर द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण पूर्णतया प्राकृतिक वर्गीकरण है।
3. जातिवृतीय वर्गीकरण – यह वर्गीकरण पादपों के विकासात्मक तथा आनुवांशिक सम्बन्धो पर आधारित है।  इस वर्गीकरण में कोशिका विज्ञान , सीरम विज्ञान भ्रूण विज्ञान , शारीरिकी की सहायता ली जाती है।  ओसवोल्ड रिप्पो , आइकलर , तख्ताजन आदि वैज्ञानिको का वर्गीकरण जाति वृतीय वर्गीकरण माना जाता है।

शैवाल (Algae in hindi ) :

शैवाल पर्णहरित युक्त सरल , संवहन उत्तक रहित थैलोफाइट्स है।  जिनमे वास्तविक जड़ , तना , पत्तियों का अभाव होता है।

आवास : ये लवणीय व अलवणीय जल में , नमीयुक्त दीवारों , गीली मिटटी , लकड़ी व कीचड़ युक्त तालाबों में पाये जाते है।  कुल शैवाल कवको (लाइकेन) तथा प्राणियों (स्लॉथ रीछ) में सहजीवन के रूप में भी पाये जाते है।

संरचना : इनका शरीर थैलस (सुकाय ) के रूप में होता है।

ये एक कोशिकीय (क्लेमाइडोमोनास ) , या बहुकोशिकीय (वोल्वोक्स ) , तन्तुमय (यूलोथ्तिक्स , स्पाइरोगाइरा  ) प्रकार का होता है।

अधिकांश शैवाल यूकेरियोटिक होते है परन्तु नील – हरित शैवाल प्रोकेरियोटिक होता है।

इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोस व पेक्टिन की बनी होती है।

शैवालो में सामान्यतया क्लोरोफिल , केरोटिन , जेंथोफिल , फाइकोसायनिन , फाइकोइरिब्तिन आदि वर्णक होते है।

पोषण : शैवाल स्वपोषी होते है ,भोजन का संचय स्टार्च के रूप में करते है।

जनन : कायिक जनन विखण्डन द्वारा , अलैंगिक जनन चल बीजाणुओ (जुस्पोर ) द्वारा तथा लैंगिक युग्मको के संलयन से होता है।

शैवालों में युग्मक समयुग्मकी (कलेमाइडोमोनास ) व असमयुग्मकी (वोल्वोक्स ) प्रकार के होते है।

आर्थिक महत्व :

1. कार्बन डाई ऑक्साइड का आधा भाग प्रकाश संश्लेषण द्वारा शैवाल स्थिर करते है तथा ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है।

2. एनाबिना , नॉस्टॉक आदि शैवाल नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर नाइट्रेट व नाइट्राइड बनाकर भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाते है।

3. पोरफायरा , ग्रेसीलेरिया , लैमीनेरिया , सरगासम आदि शैवालों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है , जेलिडियम , ग्रेसिलेरिया नामक शैवालों से प्राप्त अगर अगर का उपयोग जैली व आइसक्रीम बनाने में किया जाता है।

4. क्लोरेला में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन व विटामिन होते है , जिसका उपयोग अन्तरिक्ष यात्री भोजन के रूप में करते है।

शैवालों को तीन भागो में बांटा गया है।

1. क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)

सामान्य लक्षण :

  • ये हरे शैवाल होते है , इन्हें समुद्री घास पात भी कहते है।
  • आवास : ये लवणीय व अलवणीय जल में , गीली मिट्टी में पाये जाते है।
  • संरचना : ये एककोशिकीय अथवा तन्तुमय बहुकोशिकीय हो सकते है।
  • इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोस व पेक्टोज की बनी होती है।
  • इनमें क्लोरोफिल a व b दोनों पाये जाते है।
  • क्लोरोप्लास्ट , प्लेट , सर्पिल , अण्डाकार डिस्क या रिबन के आकार के हो सकते है।
  • क्लोरोप्लास्ट में एक या अधिक पाइरीनॉइड होते है जो स्टार्च के कण है।
  • कायिक जनन विखंडन द्वारा होता है।
  • अलैंगिक जनन चल बीजाणुओं (जुस्पोर) द्वारा होता है।
  • अलैंगिक जनन युग्मको के संलयन द्वारा होता है।

उदाहरण – क्लेमाइडोमोनास , यूलोथीक्रस , स्पाइरोगायरा , वोल्वोक्स

2. फियोफाइसी (phaeophyceae)

सामान्य लक्षण :

  • इन्हें भूरे शैवाल भी कहते है।
  • ये मुख्यतः समुद्री आवास में पाये जाते है।
  • इनका शरीर सरल , शाखित , तन्तुमय व थेल्स के रूप में होता है।
  • इनमें क्लोरोफिल A व C के रेटिनॉइड , प्यूफोजेन्थीज व जेंथोफिल होते है।
  • इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है जिसका जिलेटिन स्तर एल्जिन का बना होता है।
  • इनमें एक तन्तु तथा पत्ती के समान प्रकाश संश्लेषी प्रपर्ण पाये जाते है।
  • ये स्वपोषी होते है , कार्बोहाइड्रेट को मेथियेल या लेमिनेरियन के रूप में संचित करते है।
  • जनन , कायिक जनन – विखंडन द्वारा

अलैंगिक जनन – चल बीजाणुओं द्वारा

लैंगिक जनन – युग्मको के संलयन द्वारा

उदाहरण – एक्टोकोप्सि , डिक्टयोटा , लेमिनेरिया , सर्गासम , प्युकस आदि।

3. रोडोफाइसी (Rhodophyceae)

सामान्य लक्षण :

  • इन्हें लाल शैवाल भी कहते है क्योंकि लाल रंग आर फाइकोइरिथ्रिन वर्णक के कारण होता है।
  • ये समुद्र के गर्म व अँधेरे (कम प्रकाश वाले स्थानों पर पाये जाते है )
  • शरीर थैलस व बहुकोशिकीय होता है।
  • कोशिका भित्ति पोलीसेकेराइड की बनी होती है।
  • ये स्वपोषी होते है तथा भोजन का संचय प्लोरिडीयन स्टार्च के रूप में करते है।

जनन :  कायिक जनन – विखंडन द्वारा

अलैंगिक जनन – चल या अचल बीजाणुओं द्वारा

लैंगिक जनन – युग्मको के संलयन द्वारा

उदाहरण – पोलीसाइफोनिया , पोरफायरा , जिलेडियम आदि।

Remark:

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