मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – Price Rise Essay In Hindi

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मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – Essay On Price Rise In Hindi

बढ़ती महँगाई : दुःखद जीवन – Rising Inflation: Sad Life

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • महँगाई का ताण्डव,
  • महँगाई के कारण,
  • महँगाई का प्रभाव,
  • महँगाई रोकने के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – Mooly-Vrdadhi Kee Samasya Nibandh

प्रस्तावना–
मुक्त बाजार, भूमण्डलीकरण का दुष्प्रचार, विनिवेश का बुखार, छलाँगें लगाता शेयर बाजार, विदेशी निवेश के लिए पलक पाँवड़े बिछाती हमारी सरकार, उधार बाँटने को बैंकों के मुक्त द्वार, इतने पर भी गरीब और निम्न मध्यम वर्ग पर महँगाई की मार, यह विकास की कैसी विचित्र अवधारणा है।

हमारे करमंत्री (वित्तमंत्री) नए–नए करों की जुगाड़ में तो जुटे रहते हैं, किन्तु महँगाई पर अंकुश लगाने में उनके सारे हाईटेक हथियार कुंद हो रहे हैं।

महँगाई का ताण्डव–जीवन–यापन
की वस्तुओं के मूल्य असाधारण रूप से बढ़ जाना महँगाई कहलाती है। हमारे देश में महँगाई एक निरंतर चलने वाली समस्या बन चुकी है। इसकी सबसे अधिक मार सीमित आय वाले परिवार पर पड़ती है।

आज आम आदमी बाजार में कदम रखते हुए घबराता है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं के भाव प्रायः बढ़ते जाते हैं। आज वही वस्तुएँ सबसे अधिक महँगी होती रहती हैं, जिनके बिना गरीब आदमी का काम नहीं चल सकता।

महँगाई के कारण–महँगाई बढ़ने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं–

  • उत्पादन कम और माँग अधिक।
  • जमाखोरी की प्रवृत्ति।
  • सरकार की अदूरदर्शी नीतियाँ तथा भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और भ्रष्ट व्यवसायियों की साँठ–गाँठ।
  • जनता में वस्तुओं के संग्रह की प्रवृत्ति।
  • अंध–परम्परा और दिखावे के कारण अपव्यय।
  • जनसंख्या में निरन्तर हो रही वृद्धि।
  • सरकारी वितरण–व्यवस्था की असफलता।
  • अग्रिम सौदे और सट्टेबाजी।

फिजूलखर्ची और प्रदर्शनप्रियता भी महँगाई बढ़ने का एक कारण है। ऐसे लोग शादी–विवाह में अनाप–शनाप खर्च करते हैं और रहने को राजाओं जैसे महल बनाते हैं। आज राजतंत्र तो नहीं है किन्तु ये लोग लोकतंत्र में भी राजाओं की तरह जीते हैं। उनको कबीर का यह कथन याद नहीं रहा है कहा चिनावै मेडिया, लाँबी भीति उसारि।

घर तो साढ़े तीन हथ, घणा त पौने च्यारि।। महँगाई का प्रभाव–महँगाई ने भारतीय समाज को आर्थिक रूप से जर्जर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पेट तो भरना ही होगा, कपड़े मोटे–झोटे पहनने ही होंगे, सिर पर एक छत का इन्तजाम करना ही होगा। मगर शुद्ध और मर्यादित आमदनी से तो यह सम्भव नहीं है, परिणामस्वरूप अनैतिकता और भ्रष्टाचार के चरणों में समर्पण करना पड़ता है। निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग का तो जीवन ही दुष्कर हो गया है। महँगाई के कारण ही अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आ पा रही है।

महँगाई रोकने के उपाय–महँगाई को रोकने के लिए आवश्यक है कि-

  • बैंकें अति उदारता से ऋण देने पर नियन्त्रण करें। इससे बाजार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता है।
  • जीवन–स्तर और प्रदर्शन के नाम पर धन का अपव्यय रोका जाना चाहिए।
  • जमाखोरी और आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर रोक लगनी चाहिए।
  • आयात और निर्यात व्यापार में सन्तुलन रखा जाना चाहिए।

अन्तिम उपाय है कि जनता महँगाई के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करे। भ्रष्ट अधिकारियों तथा बेईमान व्यापारियों का घेराव, सामाजिक बहिष्कार तथा तिरस्कार किया जाय।

उपसंहार–
महँगाई विश्वव्यापी समस्या है। अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी देश में महँगाई के लिए उत्तरदायी हैं। उदारीकरण के नाम पर विदेशी पूँजीनिवेशकों को शुल्कों में छूट तथा करों से मुक्ति प्रदान करना भी महँगाई को बढ़ाता है।

यह विचार योग्य बात है कि महँगाई खाने–पीने की चीजों पर ही क्यों बढ़ती है, मोटरकारों, ए. सी. तथा विलासिता की अन्य वस्तुओं पर क्यों नहीं?

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