परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध

परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध – Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay In Hindi

Hindi Essay प्रत्येक क्लास के छात्र को पढ़ने पड़ते है और यह एग्जाम में महत्वपूर्ण भी होते है इसी को ध्यान में रखते हुए hindilearning.in में आपको विस्तार से essay को बताया गया है |

परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध – Essay On Parhit Saris Dharam Nahi Bhai In Hindi

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • परोपकारी प्रकृति
  • परोपकार के विविध उदाहरण
  • उपसंहार
  • परोपकार-मानवधर्म
  • परोपकार के विविध रूप
  • वर्तमान स्थिति

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

परोपकार (Paropkar) – Charity

प्रस्तावना – परोपकार शब्द ‘पर’ और ‘उपकार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-दूसरों की भलाई अर्थात दूसरों की भलाई के लिए तन-मन और धन से किए गए सभी कार्य परोपकार कहलाते हैं। परोपकार के समान न कोई धर्म है और न दूसरों को सताने जैसा कोई पाप। मनुष्य का सारा जीवन प्रेम और सहयोग पर आधारित है। इसी सहयोग के मूल में है-परोपकार, जिससे उपकारी और उपकृत दोनों कों खुशी होती है।

परोपकार-मानवधर्म – परोपकार मानवजीवन का सबसे बड़ा धर्म कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। मनुष्य का धर्म है, कि वह जैसे भी हो दूसरे की मदद करे। यहीं से परोपकार की शुरुआत हो जाती है। यदि मनुष्य परोपकार नहीं करता है तो उसमें और पशु में क्या अंतर रह जाता है। कवि मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –

अहा! वही उदार है, परोपकार जो करे।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

परोपकारी प्रकृति – हम ध्यान से देखें तो प्रकृति का कण-कण परोपकार में लीन दिखता है। सूर्य अपना प्रकाश धरती का अँधेरा भगाने के लिए करता है तथा गरमी से शीत हर लेता है ताकि जीव आनंदपूर्वक रह सके। चाँद अपनी शीतलता से मन को शांति देता है। बादल दूसरों की भलाई के लिए बरसकर अपना अस्तित्व नष्ट कर लेते हैं। इसी प्रकार नदी तालाब अपना पानी दूसरों के लिए त्याग देते हैं। पेड़ दूसरों की क्षुधा शांति के लिए ही फल धारण करते हैं। प्रकृति के अभिन्न अंग फूल अपनी सुगंध दूसरों को बाँटते रहते हैं। प्रकृति के इस कार्य से प्रेरित होने में संत और सज्जन कहाँ पीछे रहने वाले। वे भी दूसरों की भलाई के लिए धन एकत्र करते हैं। कवि रहीम ने ठीक ही कहा है –

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर करत न पान।
कह रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान॥

परोपकार के विविध रूप – परोपकार के नाना रूप साधन एवं तरीके हैं। मनुष्य वाणी, मन और कर्म से परोपकार कर सकता है, पर सबसे अच्छा तरीका कर्म द्वारा दूसरों की भलाई करना है, क्योंकि इसका प्रत्यक्ष लाभ व्यक्ति को मिलता है। वाणी द्वारा दूसरों की भलाई दूसरों का मनोबल बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है। परोपकार के अंतर्गत हम असहाय की धन से मदद करके रोगी की सेवा करके, अपाहिज को उसके गंतव्य तक पहुँचाने जैसे छोटे-छोटे कार्यों द्वारा कर सकते हैं।

परोपकार के विविध उदाहरण – भारत का इतिहास परोपकारी व्यक्तियों के कार्यों से भरा पड़ा है। यहाँ लोगों ने मानवता की भलाई के लिए न अपने धन को धन समझा और न तन को तन। आवश्यकता पड़ने तन, मन और धन से दूसरों की भलाई की। भामाशाह ने अपनी जीवनभर की संचित कमाई राणा प्रताप के चरणों में रख दिया। महर्षि दधीचि ने देवताओं को संभावित पराजय से बचाने के लिए और मानवता के कल्याण हेतु अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया। कर्ण ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए कवच, कुंडल और सोने के दाँत तक का दान दे दिया।

राम, कृष्ण, ईसा मसीह, मदर टेरेसा, सुकरात, महात्मा गांधी आदि ने अपना जीवन ही परोपकार में लगा दिया। परोपकार के लिए सुकरात ने ज़हर का प्याला पिया, तो गौतम बुद्ध राज्य का सुख छोड़कर संन्यासी बन गए।

वर्तमान स्थिति – मनुष्य अपनी बढ़ी हुई आवश्यकताएँ, लोभ एवं स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण इतना उलझा हुआ है कि परोपकार जैसे कार्य पीछे छूट गए हैं। लोगों में परोपकारी भावना का अभाव दिखता है। आज मनुष्य को अधिकाधिक धन संचय करने की पड़ी है इस कारण वह पशुवत अपने लिए ही जी रहा है और मर रहा है। दूसरों की भलाई करना किताबों तक सीमित रह गया है।

उपसंहार – मानव जीवन को तभी सार्थक कहा जा सकता है जब वह परोपकार करे। इसके लिए छोटे-से-छोटे कार्य से शुरुआत की जा सकती है। परोपकार करने से खुद को आत्मिक शांति तो मिलती है वहीं दूसरे को मदद एवं खुशी भी मिलती है। मनुष्य को परोपकारी वृत्ति का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए।

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